Muharram
इस्लाम धर्म में ऐसे बहुत से पवित्र त्यौहार मनाया जाते हैं जो काफी महत्व रखते हैं इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक मुहर्रम को पहला महीना माना जाता है। इस्लामी कैलेंडर के मुताबिक हिजरी वर्ष के पहले महीने को मोहर्रम कहा जाता है और इस महीने को इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक चार महत्वपूर्ण महीनों में शुमार किया गया है। इस महीने में रोजा रखने की खास अहमियत बयान की गई है।
मोहर्रम कब मनाया जाता है-
मोहर्रम के महीने को आशूरा भी कहा जाता है। मोहर्रम महीने के 10वें दिन को इस्लाम धर्म में बेहद महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। हुसैन इब्ने अली की शहादत के रूप में मोहर्रम के दसवें दिन को अलग-अलग मुस्लिम समुदाय के लोग अपने अनुसार मनाते हैं। मोहर्रम के दसवें दिन को पैगंबर मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन और उनके साथियों के शहादत के रूप में मनाया जाता है।
मोहर्रम क्यों मनाया जाता है-
इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन पैगंबर हजरत मोहम्मद के नाती इमाम हुसैन एक धर्म युद्ध में शहीद हो गए थे। कर्बला यानी कि वर्तमान समय में लोग जिसे इराक के नाम से जानते हैं, वहां सन् 60 हिजरी को यजीद इस्लाम का खलीफा बन बैठा था। यजीद पूरे अरब में अपना वर्चस्व कायम करना चाहता था लेकिन इसके लिए सबसे बड़ी चुनौती हजरत पैगंबर मोहम्मद साहब के खानदान के इकलौते चिराग इमाम हुसैन थे जो यजीद के सामने झुकने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं थे। 61 हिजरी तक यजीद का अत्याचार बहुत ज्यादा बढ़ने लगा इसीलिए इमाम हुसैन अपने परिवार के साथ इराक के शहर कुफा की तरफ जा रहे थे। मोहर्रम की दूसरी तारीख के दिन इमाम हुसैन का काफिला तपती रेत पर ठहरा। उस दौरान वहां पर पानी का एकमात्र जरिया फराच नदी थी। यजीद की फौज ने इमाम हुसैन और उनके काफिले पर इस नदी से पानी पीने के लिए रोक लगा दिया था। इन सब के बावजूद भी इमाम हुसैन झुके नहीं और अंत में इन्होंने युद्ध का ऐलान कर दिया था। इमाम हुसैन के 72 बहादुर लोगों के काफिले ने यजीद के 80000 लोगों की फौज का जमकर मुकाबला किया। हुसैन ने अपने नाना और पिता के द्वारा सिखाएं के सदाचार के द्वारा दुश्मन फौज पर विजय प्राप्त की थी। दसवें मोहर्रम के दिन तक हुसैन अपने भाइयों और साथियों के शवों को दफनाते रहे। असर की नमाज के दौरान जब हुसैन नमाज पढ़ रहे थे और वह सजदे में थे। यजीदी को लगा कि यह उनको मारने का सबसे सही मौका था और याजीदियों ने उनको मुहर्रम की दसवीं तारीख को शहीद कर दिया।
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